Thursday, February 17, 2011

भूगोल का वो क्लास

कल गुरूजी ने सिखाया था, कैसे बनाते हैं नक्शा
हिमालय तो हिमालय, समुद्र को भी नहीं बख्शा |
बड़ा अचरज हुआ जब ब्लैकबोर्ड पे गंगा बही थी
नर्मदा कावेरी सब अपनी जगह पे सही थी |
बंगाल के बाघ ने बहुत  डराया था
तो गुजरात में हमने शेरो से पंजा लड़ाया था  |
कश्मीर के डल झील का अपना ही मज़ा है
और गुरूजी ने बताया
थार में गर्मी काटना अपने आप में एक सज़ा है  |
कर्नाटक की कॉफ़ी और केरल के मसालों का कोई तोड़ नहीं 
तिरुपति के मंदिर का दुनिया में कोई जोड़ नहीं |
अजंता एलोरा भी हमने बनाये थे
और जोग वाटरफाल में खूब नहाये थे |
पहाड़ो और नदियों का चित्र बड़ा विचित्र था
पूरा भारत हमारे सामने सचित्र था |
मज़ा आ रहा था घूमने में  
और बैठे बैठे बदलो को चूमने में |
ताजमहल के सामने फोटो का वो पहला क्लिक था 
हमारी बेखयालियत का नमूना गुरूजी के सामने लीक था |  
एक कड़कदार आवाज़ ने हमें जगाया
जगती आँखों से सपनो के परदे को हटाया   |

अगले दिन का टास्क बड़ा डरावना था 
लेकिन उस दिन रात का मौसम बड़ा सुहावना था  |
सुबह सुबह सबकुछ साफ और सबकुछ गोल था 
रात की ठंडी हवा और गरम रजाई का यही रोल था  |
आज  क्लास में पीछे बैठने की होड़ थी
गुरूजी के हाथ में बांस की छड़ी बेजोड़ थी  |
बैठे बैठे ही हाथ और पीठ पे नक़्शे बनने लगे थे
और कुछ तो एक दो के बहाने भगने लगे थे |
उधर गुरूजी चश्मे को धोती से साफ कर रहे थे 
और इधर लोग पुराने दुश्मनों को माफ कर रहे थे  |
किसी ने मेरे कान में पुछा 
गंगा कहाँ से निकलती है 
नर्मदा और ताप्ती कहाँ जा के मिलती है |
मैंने चेहरा देखा और हाथ आगे बढाया 
उसने बैग से दो चॉकलेट मुझे चढ़ाया |
बताया था गंगा का उद्गम  राजस्थान है
और नर्मदा ताप्ती कहीं नहीं मिलती , वो तो खुद ही महान है |
  


 

1 comment:

  1. उत्तम प्रस्तुति...

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