Tuesday, September 14, 2010

वो जी लेगी

['हिंदी दिवस' पर हिंदी को समर्पित ये एक प्रस्तुति..........]

हिंदी
एक मध्यवर्गीय भाषा
या यूँ कहे की मध्यवर्ग की भाषा

फटेहाल परेशान दुखी
अपने ही अस्तिस्त्व को खोजती  हुई
अपने ही अस्तिस्त्व में खोयी  हुई
रोज एक पल जी लेने की कोशिश करती हुई
अपनी इज्जत छुपाने के लिए
दरवाजे पे लगे फटे परदे को रोज सिलती  हुई
ना तो घुमंतुओ को तरह कहीं भी बेफिक्र होकर सो सकती है
और ना ही तथाकथित सभ्य समाज की तरह बेपरवाह
द्रौपदी की तरह अपनों और बेगानों से लड़ती हुई
चूल्हा चौका आटा दाल से महाभारत दुहराती हुई


लेकिन एक खूबी
जो करती है इसको सबसे जुदा 
दिल समंदर से भी बड़ा
सबकुछ अपने अन्दर समाने की अद्भुत क्षमता
अच्छे की बुराई को अपनाया 
तो बुरे की अच्छाई को भी समाविष्ट किया
बिलकुल जैसे गंगा की सगी बहन ही हो  

हर हाल में खुश दिखने जैसा नाटक 
केवल नाटक नहीं बल्कि
नाटक से भी ज्यादा सच्चा ,
निश्चिन्त करती हुई
कि वो जी लेगी
चाहे जैसे भी हो  

1 comment:

  1. araay wah ops <<<<>>>> no english here

    वाह वाह यह हुई ना बात , आप तो कवि हो गए , कहाँ छुपा रखी थी ये प्रतिभा, बने रहो और हिंदी दिवस पर आपको बहुत बहुत बधाई

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