Thursday, September 23, 2010

शायद कभी ना मिले

लोग कहते हैं

मैंने अपना पहला निवाला दादी के हाथ से लिया था
दूध भात और थोड़ी सी चीनी
मैंने रोते रोते मुह से बाहर कर दिया था
मम्मी मारने के लिए उठी ही थी
और दादी ने अपनी गोद में छुपा लिया था मुझे

शाम के समय जब माँ
लालटेन में तेल डाल रही थी
और शरारत में मैंने पैर से ठोकर लगा के
शीशा फोड़ दिया था
मम्मी मारने के लिए उठी ही थी
सरपट भागा था मैं 
और दादी ने अपनी गोद में छुपा लिया था मुझे

घर घर जाकर सौदा देने आई
सहुआईन से कितना झगडा किया था
क्यूंकि उसने छीन लिया था मेरी हाथ से 
वो दो पांच पैसे के नारंगी चाकलेट
जो उसकी टोकरी से मैंने उठा ली थी
और चोरी के जुर्म में  मम्मी मारने के लिए उठी ही थी
 सरपट भागा था मैं 
 और दादी ने अपनी गोद में छुपा लिया था मुझे

आज भी महसूस होती हैं

वो कांपती खुरदरी हाथो की थपकियाँ
वो राजा रानी चूहे बिल्ली की कहानियां 
वो बेजान सी हाथ अपने सर के ऊपर 
पूरे पके हुए बालो की छांव,
लगभग जवाब दे गयी आँखों की चमक,
खाट से नहीं उठ पाने की बेबसी
पर मेरे लिए दुनिया उठा लेने की चाह,
लडखडाती जुबान से आशीर्वादों की बारिश

शायद कभी ना मिले

1 comment:

  1. aapke pichhi do abhivyaktiyon se jyada acchi, aapki ye haal ki abhivyakti hai..
    sachmuch acchi kah sakte hain ise

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